खून की पहली पुकार (Khoon Ki Pehli Pukaar)
हिंदी हॉरर कहानी - बदले की प्यास और रहस्यमयी ताकत
रात का डरावना सन्नाटा
रात गहरी हो चुकी थी। हवेली में सब सोए हुए थे, लेकिन आरव की आँखों से नींद कोसों दूर थी। उसके कानों में अब भी तलवार की गूंज सुनाई दे रही थी— खून… मुझे खून चाहिए… बदला… बदला…
धीरे-धीरे उसके दिल की धड़कन तेज होती गई। उसकी नसों में दौड़ती शक्ति अब उसके नियंत्रण में नहीं बची थी। मानो कोई अदृश्य हाथ उसे किसी अंधेरे रास्ते की तरफ़ खींच रहा हो।
गाँव में अशांति
सुबह होते ही खबर आई कि पास के गाँव में गुंडों ने लोगों से जबरन वसूली और लूटपाट की। विरोध करने वालों को बुरी तरह पीटा गया।
यह सुनकर आरव का गुस्सा फूट पड़ा। उसकी मुट्ठियाँ कस गईं— अब और नहीं… अब ये अपमान सहा नहीं जाएगा!
पहला शिकार
शाम होते ही आरव तलवार लेकर गाँव पहुँचा। बदमाश उसका मज़ाक उड़ाने लगे। मगर जैसे ही तलवार हवा में उठी, धूल का तूफ़ान मच गया।
बदमाशों ने हमला किया, लेकिन तलवार से निकली आग की लपटों ने उन्हें डरा दिया। आरव गरजा— ये दर्द… तुम्हारे खून से धुला जाएगा!
एक वार में पहला बदमाश ज़मीन पर गिर पड़ा, खून से लथपथ। बाकी डरकर भाग खड़े हुए। आरव को भीतर से संतुष्टि मिली, लेकिन अनन्या की आवाज़ गूंज रही थी— आरव… ताक़त का इस्तेमाल सोच-समझकर करना।
रहस्य और डर
गाँववालों ने उसे देखकर फुसफुसाना शुरू कर दिया— ये इंसान नहीं… ये दानव बनता जा रहा है।
आरव खुद से सवाल कर रहा था— क्या मैं सही हूँ या मैं अंधेरे का रास्ता अपना रहा हूँ?
साधु की भविष्यवाणी
साधु उसके रास्ते में आया और बोला— पहला खून कभी आख़िरी नहीं होता। यह तलवार बार-बार खून माँगेगी। जिस दिन तू इसे नियंत्रण खो देगा, उसी दिन तेरा अंत होगा।
आरव बोला— क्या मैं अपमान सहूँ? अपनों का दर्द देखूँ?
साधु ने कहा— न्याय और बदले में रेत की लकीर जितना फ़र्क है। इसे मत भूल।
अनन्या की चुप्पी
अनन्या की आँखों में डर था। उसने कहा— तुम वो आरव नहीं रहे। तुम्हारे हाथ खून से रंग चुके हैं। यह रास्ता तुम्हें मुझसे दूर ले जाएगा।
आरव की आत्मा पर यह शब्द किसी गहरे वार से कम नहीं थे।
रहस्यमयी हमला
अगली सुबह हवेली पर खून से लिखा संदेश मिला— तेरा खून सिर्फ शुरुआत है… असली खेल अब शुरू होगा।
अचानक हवेली में चीखें गूंज उठीं। कोई अज्ञात ताक़त हवेली में घुस आई और सीधा आरव के कमरे की ओर बढ़ी।
दरवाज़े के पीछे सिर्फ दो लाल आँखें चमक रही थीं। कानों में गूंजा— बदला तेरा नहीं… बदला मेरा है।
तलवार अचानक आरव के हाथ से निकलकर हवा में तैरने लगी…
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