महालक्ष्मी पूजा की कहानी पूजन सामग्री के साथ
महालक्ष्मी माता जी यह पूजा है जो यूपी के कुछ जिलों में होती है जो कनागत की अष्टमी को होती है जो माताएं बहनें इस पूजा को करती हैं वह इस पूजा को जरूर जानती होंगी अतः उनकी सुविधा के लिए मैं इस पूजा को लिख रहा हूं
पूजा की सामग्री सिंगार का सामान 16 चावल के दाने 16 धागे से बना हुआ रेशमी धागे से 16 गांठ वाला गड़ा
16 घास के पौधे की दूब 16 बरगद के की पोड़ , चार पूरी चार मीठी पूरी , एक मिट्टी का हाथी और 16 दीपक
सर्वप्रथम विधि विधान से तैयार होना चाहिए और पैरों में महावर भी होनी चाहिए उसके बाद गड़े को लेकर उसमें घास लपेटकर 16 बार अपने ऊपर पानी छिडके
16 बार पानी इस प्रकार छिड़कना चाहिए
सबसे पहले सिर में मांग पर पानी छिड़कने के बाद ,आंख ,कान नाक, मुंह, गला ,छाती ,सीधा और उल्टा कंधा, पेट ,जांघ, घुटने, एड़ी और पैर पर पानी छिड़कना चाहिए
इसी क्रम में 16 बार पानी छिड़कना चाहिए
उसके बाद पुरियो को एक तांबे के लोटे पर रख देना चाहिए लोटे मै पानी भरा होना चाहिए और उसमें कुछ बरगद की पोड़ रख दें और साथ में चार मीठी पूरी भी रख देनी चाहिए लोटे को एक लकड़ी के पटा के ऊपर जिसके ऊपर एक कपड़ा बिछा हो उसके ऊपर रख देना चाहिए और उस कपड़े के ऊपर और मिट्टी का हाथी भी रख दें और साथ में दीपक भी रख दें और दीपक जला दें
उसके बाद गणेश भगवान की पूजा करें गौरी देवी के पूजा करें लक्ष्मी देवी की पूजा करें और फिर उसके बाद हाथी की पूजा करनी चाहिए
आइए सब मिलकर कहानी सुनते हैं
एक समय की बात है एक राजा था उनके कोई संतान नहीं थी एक बार वह जंगल में शिकार खेलने गए तो उन्हें वहां पर कुछ परियां दिखाई थी परियां 16 कुल्ला वह 16 धागे से गढ़ा बनाकर उससे अपने अंगों को पानी छिड़क रही थी राजा ने पूछा यह आप लोग क्या कर रहे हो तो उन परियों ने बोला कि यह मां लक्ष्मी का व्रत होता है इससे गणा बनाकर अपने अंगों पर पानी छिड़का जाता है और जो भी मनोकामना होती है वह पूरी हो जाती है राजा ने कहा कि मेरी कोई संतान नहीं है मुझे भी है गाना दे दो और पूजा की विधि बता तो परियों ने राजा को घड़ दे दिया वह पूजा की सभी विधि-विधान बता दिया राजा महल में आए वह रानी को सभी बातें बताई रानी ने गधे को फेंक दिया रानी की दासी यह सब बातें सुन रही थी
दासी ने उस गधे को उठा लिया और अपने घर पर ले आई और विधि पूर्वक महालक्ष्मी माता की पूजा की दासी के कोई भी पुत्र नहीं था महालक्ष्मी माता की कृपा से दासी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई उधर रानी को को कुबड़ा रोग लग गया और नगर की प्रजा उनसे दूर भागने लगी राजा ने ब्राह्मणों और पंडितों से पूछा कि यह किस कारण से हुआ तो ब्राह्मणों और पंडितों ने बताया कि रानी को महालक्ष्मी का पाप लगा है अगर यह चुपके से महालक्ष्मी की कथा सुन लें तो इनका पाप मिट जाएगा
रानी को पता चल गया की मां लक्ष्मी माता की वजह से यह सब हुआ है तो एक घर में महालक्ष्मी की व्रत की कथा सुनाई जा रही थी तो रानी घर के बाहर जाने वाले पानी के रास्ते पनारे से देखकर समस्त कथा सुन रही थी जब कथा संपूर्ण हो गई तो घर के एक सदस्य ने उस पर पानारे से दीपक फेंका जो रानी के सीधे मुंह पर जाकर लगा और रानी का मुंह एक सूअर की तरह हो गया रानी राजा के बाग को विध्वंस करने लगी तो माली ने राजा को बताया कि बाग में एक सूअर आ गया है जो बाग को विध्वंस कर रहा है राजा ने एक घेरा बनाया और कहा कि यह सूअर जिसकी टांगों के बीच से निकल जाएगा उसका सिर काट दिया जाएगा वह सूअर राजा की टांगों के बीच से निकल गया और एक ऋषि के आश्रम में जाकर छिप गया
संध्या के समय ऋषि आश्रम से आए तो उन्होंने यह विचित्र दृश्य देखा ऋषि को दया आ गई और उसको 12 वर्ष की कन्या बना दिया ऋषि जब भी बाहर जाते तो उस लड़की को जौ बीनने के लिए दे जाते वह संध्या के समय वह जौ स्वर्ग के हो जाते थे
कुछ समय के पश्चात राजा वहां से गुजर रहे थे तो राजा ने देखा कि यह तो हमारी रानी है और इसको में अपने साथ लेकर जाऊंगा ऋषि ने कहा कि हमने इसको अपनी कन्या के समान बड़ा किया है इसलिए में इसकी विधि पूर्वक राजा के साथ शादी संपन्न करके इस को विदा करूंगा ऋषि ने विधिपूर्वक शादी की और राजा के साथ रानी जाने लगी तो ऋषि ने देखा कि ऋषि आश्रम भी रानी के साथ जा रहा है ऋषि ने सोचा कि यदि यह आश्रम भी चला गया तो हम कहां रहेंगे यह सोचकर ऋषि ने अन्य ऋषियों से पूछा कि इसका क्या कारण है तो उन्होंने कहा कि आपने अपनी कन्या का विवाह किया पर विदा के समय आपने अपने देहरी पर कन्या से चावल नहीं छुड़वाये इस कारण ही यह देहरी भी उसके साथ जा रही है अतः अब ऋषि ने वैसा ही किया कन्या के चावल रखते ही देहरी वहीं रुक गई और रानी और राजा अपने महल चले गए और सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे
हे महालक्ष्मी माता जैसे आपने राजा और रानी पर कृपा करी वैसी ही ही सब पर कृपा करना
कहानी सुनाने की बात एक दाना चावल का एक दूब की पत्ती का चावल में चंदन लगाकर यह मंत्र बोले और हाथी के पास रख दें और इसी प्रकार 16 बार करें
मंत्र इस प्रकार है
अमोती दमोती पोला पटपट मुगलसराय राजा महते नोला बरुआ बम बम बरुआ काली काली महाकाली महालक्ष्मी हम से कहती तुम से सुनती सोलह बोल की एक कहानी
16 दीपक को जलाए व एक दीपक को घर के जो पानी निकलने का रास्ता जो पाइप रहता है उस पाइप में दोनों पैरों के बीच में कर के एक दीपक वहां रख दें और उस पर पानी छिड़क दें और यह कहे
काले तिल जौ हरियारे बांधे बिछड़े छूटे मिले
इसी तरह 16 बार दीपक के ऊपर पानी छोड़ कर दो ध्यान रखें दीपक बुझने नहीं चाहिए और हाथ पैर धो कर पूजा घर पर वापस आ जाएं और प्रसाद बांटे
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