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बाबा बिहारी और उनका यार | Bhakti ki Kahani | Krishna Bhakti Story

बाबा बिहारी और उनका यार | Bhakti ki Kahani | Krishna Bhakti Story  

यह कहानी है रतन सिंह गांव के बाबा बिहारी की, जो दुनियादारी से अलग केवल अपने यार श्रीकृष्ण में डूबे रहते थे। जानें उनकी भक्ति, विश्वास और चमत्कारी घटनाओं की अनोखी कथा।  

 Introduction 
 
भारत की धरती पर समय-समय पर ऐसे संत, फकीर और बाबा जन्में हैं, जिन्होंने अपने जीवन को सिर्फ भगवान और भक्ति के लिए समर्पित किया। वे साधारण लोग नहीं होते, बल्कि श्रद्धा, विश्वास और भक्ति की मिसाल बन जाते हैं। ऐसी ही कहानी है *रतन सिंह गांव* में रहने वाले **बाबा बिहारी** की, जिन्हें लोग पागल मानते थे लेकिन उनका हृदय केवल श्रीकृष्ण में रमा था।  

वे हर समय अपने प्रभु कृष्ण को "यार" कहकर संबोधित करते थे और उनकी जुबान पर बार-बार एक ही वाक्य आता था – "मेरा यार बड़ा है अच्छा, मेरी करता है रक्षा।"

यह कथा न केवल उनकी भक्ति की है बल्कि इस बात का प्रमाण भी है कि जब मनुष्य पूरी तरह से अपने ईश्वर को समर्पित हो जाता है, तो चाहे कितनी ही परेशानियां क्यों न आएं, प्रभु उसका साथ कभी नहीं छोड़ते।  

बाबा बिहारी की भक्ति का सफर  
Baba Bihari Ki Bhakti Ka Safar  

रतन सिंह गांव में लोग बाबा बिहारी को साधारण इंसान की तरह नहीं देखते थे। वे उन्हें अक्सर पागल समझते थे, क्योंकि वह दुनियादारी के नियमों में नहीं बंधते थे।  

- कोई उन्हें गाली देता  
- कोई पत्थर मारता  
- कोई मजाक उड़ाता  

पर बाबा का जवाब हमेशा एक ही होता –  
"मेरा यार बड़ा है अच्छा, मेरी करता है रक्षा।" 

गांव के लोग हंसते, व्यंग्य करते, लेकिन बाबा को इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता। वह कृष्ण-भक्ति में लीन होकर मस्ती में झूमते रहते।  

भूख की कसौटी और यार का साथ  
Bhookh Ki Kasauti Aur Yaar Ka Saath 
 
एक बार बाबा बिहारी दो-तीन दिन से भूखे थे। उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था। वे गांव के पास बने एक होटल के सामने खड़े होकर दूर से लोगों को खाते देखते रहे।  

होटल के भीतर बैठे एक सज्जन उनकी ओर आए और पूछा  
“बाबा, क्या आपको भूख लगी है?”  

बाबा मुस्कुराए और बोले –  
“हाँ लगी तो है, पर अगर मेरा यार खिलाएगा तो खा लूँगा, नहीं खिलाएगा तो नहीं खाऊँगा।”  

वह सज्जन बड़े ही सरल और धार्मिक स्वभाव के थे। उन्होंने बाबा को खाना खिलाया। बाबा ने उसे अपने यार की कृपा माना और खुशी-खुशी वहाँ से निकल पड़े, बार-बार बोलते हुए।
"मेरा यार बड़ा है अच्छा, मेरी करता है रक्षा।"  

पानी का गड्ढा और बाबा की परीक्षा  
Paani Ka Gaddha Aur Baba Ki Pareeksha  

होटल से निकलने के बाद रास्ते में एक बड़ा गड्ढा था, जिसमें पानी भरा था। बाबा बिहारी अचानक उसमें कूद पड़े और मस्ती में उछलने लगे। पास से गुजरते कुछ नौजवान पार्टी के कपड़े पहने हुए जा रहे थे। बाबा के कूदने से पानी की छींटे उनके कपड़ों पर पड़ गए।  

एक युवक झल्लाकर बोला –  
“बाबा, तू अंधा है क्या? देखता नहीं? हमारे कपड़े खराब कर दिए।”  

दूसरा बोला – “यह पागल है। आज इसकी पागलपन की दवा देते हैं।”  

और सभी नौजवान मिलकर बाबा की बुरी तरह पिटाई करने लगे। 

यार की लीला और न्याय का पलड़ा  
Yaar Ki Leela Aur Nyay Ka Palda 

 बुरी तरह पिटने के बाद भी बाबा ने सिर्फ अपने यार से कहा 
“पहले दिया खाना, अब दिया बजाना। जैसे तुम रखोगे, वैसे ही रहूँगा।”  

वे पास ही एक पेड़ के नीचे बैठकर फिर से गाने लगे –  
"मेरा यार बड़ा है अच्छा, मेरी करता है रक्षा।" 

उधर नौजवान हंसते-बोलते आगे बढ़े। लेकिन तभी पीछे से तेज़ी से आती एक ट्रक ने उन्हें टक्कर मार दी। पलभर में सब घायल हो गए।  

किसी का पैर टूटा, किसी का हाथ, किसी के सिर पर गहरी चोट आई। जो थोड़ी देर पहले बाबा पर हँस रहे थे, अब कराहते हुए अस्पताल पहुँचाए गए।  

वृद्ध और बाबा के बीच संवाद  
Vridh Aur Baba Ke Beech Samvaad  

पास ही खड़े एक वृद्ध ने पूरी घटना देखी। उसके मन में विचार आया कि शायद बाबा ने इन्हें श्राप दिया होगा।  

वह बाबा के पास आया और बोला –  
“बाबा, आपने इन्हें श्राप क्यों दिया?”  

बाबा हँसते हुए बोले –  
“मैं क्यों किसी को श्राप दूँगा? मेरे लिए सब एक समान हैं।”  

वृद्ध ने पूछा – “तो फिर उनका एक्सीडेंट कैसे हो गया?”  

बाबा मुस्कुराए और बोले –  
“जैसे वह सभी एक-दूसरे के यार थे, वैसे ही मेरा यार तो यारों का यार है। जब वे अपने दोस्त के अपमान को सह नहीं पाए और सबने मिलकर मुझ पर हमला किया, तो मेरा यार भी यह कैसे सहन करता? वही न्याय करने आया।”  

इसके बाद बाबा ठहाके मारकर हँसने लगे और वही जप दोहराने लगे –  
"मेरा यार बड़ा है अच्छा, मेरी करता है रक्षा।"

वृद्ध के पास अब कोई शब्द नहीं बचे थे।  

कहानी का महत्व  
 Kahani Ka Mahatva  
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि सच्ची आस्था और विश्वास रखने वाले भक्त के साथ भगवान हमेशा खड़े रहते हैं। लोग उसे चाहे पागल कहें या अपमानित करें, लेकिन अंत में ईश्वर उसी के साथ होते हैं, जिसका हृदय निर्मल और भक्ति में अडिग होता है।  

 Moral of the Story 
 
"सच्चा प्रेम और अटूट विश्वास भगवान तक इंसान को पहुँचा देता है। किसी भक्त को कभी तुच्छ या पागल कहकर अपमानित न करो, क्योंकि भगवान अपने भक्त का अपमान कभी बर्दाश्त नहीं करते।"

FAQs  

Q1: बाबा बिहारी किस गांव के थे?  
रतन सिंह गांव के रहने वाले थे।  

Q2: बाबा बिहारी किस भगवान के भक्त थे?
वे श्रीकृष्ण को *यार* मानकर उनकी भक्ति करते थे।  

Q3: लोग उन्हें पागल क्यों मानते थे? 
क्योंकि वे दुनियादारी के नियमों से अलग रहते और हरस्थिति में सिर्फ अपने यार का नाम लेते।  

Q4: कहानी का मुख्य संदेश क्या है?  
सच्चे भक्त का भगवान कभी साथ नहीं छोड़ते और अंततः भक्ति की ही विजय होती है।  

Q5: इस घटना में सबसे बड़ा सबक क्या है?  
दूसरों का अपमान और निर्दोष व्यक्ति को कष्ट देना अंततः विपत्ति का कारण बनता है।  

Conclusion  

बाबा बिहारी की यह कथा केवल एक रहस्यमयी घटना नहीं, बल्कि आध्यात्मिक प्रेरणा है। यह हमें सिखाती है कि ईश्वर को *यार* मानकर, विश्वास और प्रेम से नाम जपकर जीवन जीने वाला व्यक्ति कभी पराजित नहीं होता।  

बाबा जैसे संत दिखावे से दूर, दुनियावी बंधनों से मुक्त होते हैं और उनकी नीयत व भक्ति ही उन्हें महान बनाती है।  

"मेरा यार बड़ा है अच्छा, मेरी करता है रक्षा" – यही वाक्य आज भी सच्चे भक्तों के मन में आशा और विश्वास जगाता है।  


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