चाँदनी रात का सन्नाटा था। हवाओं में एक ठंडी कराह सी बह रही थी। नगर के सबसे बड़े हवेली के बाहर गाड़ियों की कतारें लगी थीं, क्योंकि भीतर उस अमीर जागीरदार रुद्रप्रताप सिंह का भव्य जलसा चल रहा था। चारों ओर चकाचौंध रौशनी और शाही सजावट थी। लेकिन उस चमक-धमक के बीच एक कोना ऐसा भी था जहाँ अंधेरा पसरा हुआ था।वहीँ पर, खिड़की की सलाखों से झाँकता बैठा था वह लड़का, आरव।आरव की पहली झलक
आरव इस हवेली का इकलौता वारिस था। दौलत की कोई कमी नहीं थी। उसके पिता के पास अपार ज़मीन-जायदाद, कंपनियाँ और अनगिनत सोना-चाँदी था। लेकिन भीतर से आरव कभी इस दौलत पर घमंड नहीं करता।आरव की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उसका दिमाग़ साधारण बच्चों से थोड़ा कमज़ोर था। लोग कहते –
“अरे, यह अमीरजादा है… मगर देखो तो जरा, दिमाग से कमज़ोर है। किसी काम का नहीं निकल पाएगा।”ये बातें उसके कानों में लगातार गूंजती रहतीं। कई बार विवाह समारोहों में, रिश्तेदार उसके पीछे हँसते थे। स्कूल में भी उसके साथी मज़ाक उड़ाते थे।मगर आरव के दिल में एक कोमल भाव हमेशा जीवित रहा—प्यार।
प्यार की शुरुआत
आरव को बचपन से ही अपनी बगिया में खेलना अच्छा लगता था। उसी बगिया में आया था एक मध्यमवर्गीय परिवार का बच्चा, जिसकी बहन का नाम था अनन्या।
अनन्या की मुस्कान आरव को बचपन से सम्मोहित करती थी।धीरे-धीरे समय बीता, आरव को समझ में आया कि वह अनन्या से गहरा प्यार करने लगा है।लेकिन जैसा अक्सर समाज में होता है—अमीर और ग़रीब के बीच का यह रिश्ता कभी स्वीकार नहीं किया गया।अनन्या का भाई, जो खुद को बहुत इज्ज़तदार मानता था, अक्सर आरव को ताना देता—
“अरे पगले, तू सोच भी कैसे सकता है कि हमारी बहन तुझसे प्यार करेगी? तेरे पास दिमाग़ नहीं है। दौलत से सब कुछ खरीदा जा सकता है, मगर इज्ज़त और समझ नहीं।”ये शब्द आरव के दिल में तीर की तरह चुभते।
अपमान की आग
एक दिन रुद्रप्रताप के बनाए भव्य मेहमानख़ाने में बड़ा आयोजन हुआ। वहाँ शहर भर के लोग मौजूद थे। उसी मंच पर अचानक किसी ने आरव का मखौल उड़ाया।उसके ही मोहल्ले के कुछ लोग हँसते हुए बोले:
“देखो-देखो, यह अमीर का बेटा है, मगर दिमाग से ऐसा जैसे बच्चा हो… हाहाहा!”हॉल ठहाकों से गूंज उठा।
आरव वहीं खड़ा रहा, बिना कुछ बोले।भीड़ में जब उसकी नज़र अनन्या पर पड़ी, उसे हैरानी हुई। अनन्या की आँखों में आँसू थे। उसने सिर झुका लिया।आरव समझ गया कि अपमान सिर्फ उसका नहीं हुआ है, बल्कि उसके प्यार के मान को भी ठेस पहुँची है।
खून का बदला लेने की कसम
उस दिन के बाद आरव ने अपने कमरे की दीवारों के सामने खड़े होकर कसम खाई—
“जिसने मुझे दर्द दिया है… जिस समाज ने मुझे तिरस्कार दिया है… मैं एक दिन ऐसा बनूँगा, जो पूरी ताक़त से बदला लेगा। अगर मुझे अपनी आख़िरी बूंद खून भी देनी पड़े… तो भी!”मगर वह जानता था कि उसके पास अभी तक कोई ताक़त नहीं है। उसके पास दौलत तो है, मगर दौलत से वह अपने अंदर की कमज़ोरी को नहीं मिटा सकता था।
रहस्यमयी रात
एक गहरी रात आरव अपने हवेली के पुराने तहख़ाने में गया। वह तहख़ाना दशकों से बंद था। कहते थे, वहाँ उसके पूर्वजों की वस्तुएँ रखी थीं।जब उसने उस तहख़ाने का ताला तोड़ा, तो एक अजीब हवा का झोंका आया। भीतर अंधेरा, धूल और मकड़ीजाल था।धुंध में उसे एक पुरानी तलवार दीवार में गड़ी दिखी। उस तलवार पर रहस्यमयी लाल निशान चमक रहे थे।
जैसे ही उसने वह तलवार छुई, अचानक उसका पूरा शरीर हिल गया। उसकी आँखें लाल हो उठीं।उसी क्षण उसे एक आवाज़ सुनाई दी:
“आरव! तू जिसे कमज़ोर कहते हैं, अब वह नहीं रहेगा। तेरे भीतर अब शक्ति जागृत होगी। अब तू केवल एक इंसान नहीं, बल्कि विधाता का चुना हुआ योद्धा है।”आरव ने हथियार कसकर थामा। उसकी रगों में ऐसा लगा मानो बहता हुआ खून आग में बदल गया हो।वह समझ गया कि उसे उन सबके अपमान का बदला लेने की शक्ति मिल चुकी है।
कहानी की दिशा
अब आरव सिर्फ एक अमीरजादा नहीं था जो अपने प्यार के लिए अपमान सहता था।
वह अब एक योध्दा बन चुका था, जिसके सामने अत्याचार करने वाले काँपेंगे।मगर यह ताक़त उसे कहाँ ले जाएगी?
क्या वह सचमुच अपने खून का बदला ले पाएगा?
क्या उसका प्यार अनन्या उसे समझ पाएगी या उससे डर जाएगी?कहानी अब और गहरी होने वाली थी, जहाँ हर मोड़ पर रहस्य, षड्यंत्र और खून का इन्साफ़ छुपा था।
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