Kanjush seth kee kahani | कंजूस सेठ की कहानी

 

Agar Bhagwan Ji kahate Hain khana khana padega, to  khana hi padega |अगर भगवान जी कहते हैं खाना खाना पड़ेगा, तो खाना ही पड़ेगा






एक समय की बात है सुदामा नगरी में रामचंद्र नामक के एक सेठ रहा करते थे वह बहुत ही कंजूस सेठ थे  उस नगर के लोग सेठ से बहुत कहा करते थे कि सेठ जी इतना पैसा लेकर कहां जाओगे कुछ तो भगवान के नाम पर दान कर दो या गरीबों की सेवा में अपना धन लगा दो और फिर सेठ हमेशा यही कहते थे कि मेरे पास खर्च करने को बिल्कुल भी धन नहीं है

एक समय की बात है रामचंद्र एक गली से गुजर रहे थे तो वहां पर उन्होंने देखा कि एक जगह भागवत हो रही थी हालांकि भागवत में कभी रामचंद्र सेठ नहीं जाते थे लेकिन एक शब्द उनके कान में ऐसा पड़ गया कि उनको भागवत पंडाल में जाने को विवश होना पड़ा जहां पर भागवत हो रही थी वहां के पंडित जी प्रभु श्री राम के बारे में चर्चा कर रहे थे कि प्रभु श्रीराम हमारे बहुत ही दयालु है बहुत ही कृपालु हैं अगर कोई उनको सच्चे मन से पुकारता है तो वह दौड़े दौड़े चले आते हैं और अपने भक्तों की हर इच्छा को पूरा करते हैं उनकी मर्जी के बिना संसार का पत्ता भी नहीं हिल सकता और साथ में पंडित जी ने यही बोला कि अगर भगवान जी चाहे कि आज आपको खाना खाना पड़ेगा तो आपको खाना खाना ही पड़ेगा 

सेठ यह सुना उसका माथा चकरा गया और मन ही मन में सोचा कि मैं खाना नहीं खाऊंगा तो भगवान जी मुझको जबरदस्ती खाना कैसे खिला देंगे तभी उसके मन में विचार आया कि मैं आज रात में खाना नहीं खाऊंगा तो देखते हैं भगवान जी मेरे को खाना कैसे खिला देंगे यह सोचकर वह शाम को अपनी दुकान को बंद करके और अपने परिवार में यह बोल कर गया कि वह किसी काम से दूसरे नगर में जा रहा है और कल वह भोर होते ही वापस आ जाएगा

 यह कहकर सेठ वहां से निकल गया और उसी नगर में एक जंगल था उसी जंगल में जाकर एक पेड़ के ऊपर जाकर बैठ गया जहां पर दूर दर तक ना तो कोई आता था ना कोई जाता था वह मन में सोच रहा था  कि आज रात भर मैं इसी पेड़ के ऊपर रात गुजरुगा मैं भी देखता हूं  कि मुझे भगवान कैसे खाना खिलाएंगे यह सोचते सोचते रात के 3:00 बज चुके थे वह मन ही मन बहुत खुश हो रहा था कि पंडित जी गलत बोल रहे थे कि जब तक मैं ना चाहूं मैं मुझे कोई कैसे खाना खिला सकता है 

 सुबह के 4:00 बज चुके थे  तभी एक बूढ़ी दादी मां आई और वहां खाने से भरी हुई एक थाली रख गई क्योंकि वह सेठ जिस पेड़ पर बैठा था वह पेड़ उस बूढ़ी मां का कुल देवता का पेड़ था बूढ़ी मां ने वहां पर खाने की थाली रखी और उस पेड़ की पूजा करी और वहां से अपने निवास स्थान का को वापस चली गई 

पेड़ पर बैठकर वह सेठ यह सब नजारा देख रहा था उसको पेट में भूख तो लगी थी लेकिन वह खाने को राजी नहीं था क्योंकि वह यह सोच रहा था कि आज तो मुझे भगवान ही खिलाएंगे तभी मैं खाऊंगा नहीं तो मैं नहीं खाऊंगा और वह यह मन ही मन में विचार कर रहा था तभी अचानक वहां पर कुछ चोरों की टोली आई और वह चोर उसी पेड़ के नीचे बैठकर अपना आपस में  धन बांटने लगे

 इसी बीच एक चोर की नजर उस खाने पर पड़ी तो वह चोर बाकी सब चोरों से बोलता है कि हम तो रोज यहां पर आकर अपना धन बांटते हैं आज यहां पर खाना कौन रख गया है सारे चोर आपस में विचार करने लगते हैं तभी एक चोर कहता है कि जरूर किसी को हम लोगों का यह ठिकाना पता चल गया है उसने यह खाना रखा हुआ है ताकि हम लोग खाएं और खाकर हम लोग मर जाए और हमारा धन वह लेकर चला जाए इस पर दूसरे चोर ने कहा कि भाई आप बिल्कुल सही कह रहे हो जरा आसपास देखो अगर किसी ने खाना रखा होगा तो आसपास वह यहीं कहीं होगा चारों चोर चारों तरफ देखने लग जाते हैं तभी एक चोर की नजर सेठ जी की तरफ पड़ती है और वह बाकी चोरों से बोलता है है मिल गया मिल गया इसी व्यक्ति ने खाना रखा था बाकी सब चोर कहते हैं कि इस व्यक्ति को जल्दी से नीचे उतारो 

सेठ उस पेड़ से नीचे उतरने को राजी नहीं था लेकिन चोरों के धमकाने पर वह सेठ उस पेड़ से नीचे उतर आया सेठ  ने डरते हुए उन चोरों से कहा कि मैं तो बस ऐसे ही इसे आज रात गुजारने इस पेड़  पर आया था और यह खाना तो बूढ़ी दादी रख कर  गई है मैंने इस खाने को नहीं रखा हुआ है 

तभी उनमें से एक चोर बोला कि यह व्यक्ति झूठ बोल रहा है इतने सुनसान जंगल में भला रात बिताने कौन आएगा उनमें से फिर एक चोर बोला अरे एक काम करो सबसे पहले इसको ही खाना खिलाओ तो अपने को मालूम चल जाएगा कि  यह व्यक्ति झूठ बोल रहा है या नहीं तो चोरों ने सेठ को बोला कि अरे सबसे पहले इसमें से तुम खाना खाओगे 

अगर तुम सही कह रहे हो तो उसके बाद हम सब लोग खाना खाएंगे अब सेठ अपनी प्रतिज्ञा पर अड़ा हुआ था इसलिए उसने खाने से मना कर दिया तभी एक चोर ने एक डंडा उठाया और उसकी पीठ पर प्रहार किया और बोला अगर खाना नहीं खाएगा तो मैं तुझे यही पीट-पीटकर मार डालूंगा 

अब तो सेठ के जान पर बन आई कहावत है ना मरता क्या न करता रोते-रोते सेठ ने थाली में से थोड़ा-थोड़ा खाना खाया और खाने के बाद बोला देखो मुझे कुछ नहीं हुआ चोरों चोर को को सेठ की बात पर विश्वास हो गया और चोरों ने सेठ को वहां से भगा दिया अब तो सेठ रोते-रोते मन में सोच रहे थे की पंडित जी सही कह रहे थे अगर भगवान की आज्ञा है तो खाना खाना ही पड़ेगा अगर भगवान की आज्ञा नहीं मानी तो भगवान डंडा मारकर भी खाना खिलाते हैं अब सेठ को समझ में आ गया था कि भगवान की मर्जी के  बिना एक पत्ता भी नहीं मिलता


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