जब भगवान श्री कृष्ण को भक्त श्यामू दास बनकर आना पड़ा
श्यामू दास चार भाई थे वह चारों भाइयों में से सबसे छोटे थे श्यामू दास का पढ़ाई में बिल्कुल भी मन ना लगता था वह तो बस कृष्ण भक्ति के ही दीवाने थे जहां पर कृष्ण भक्ति की लीला चल रही होती तो वहां पर वह घंटो बैठे रहते थे उन्हें अपने तन की कोई सुध नहीं रहा करती थी परिवार वालों ने उनको पढ़ने के लिए भेजा लेकिन उनका पढ़ने में मन नहीं लगता था स्कूल में भी वह कृष्ण भक्ति के अलावा वह अपने गुरु जी से किसी के बारे में भी बात नहीं किया करते थे स्कूल के सामने जैसे ही कोई कृष्ण भक्ति की टोली निकला करती थी वह स्कूल से गायब हो जाते और कृष्ण भक्तों की टोली में शामिल हो जाया करते थे
उनका तनिक भी पढ़ाई में मन ना लगा परिवार वालों ने उनको पढ़ाने के सारे प्रयास किए लेकिन सारे प्रयास विफल रहे धीरे-धीरे उनका बचपन निकल गया अब वह जवानी की दहलीज पर आ गए थे उनके परिवार ने सोचा की चलो इसको कुछ काम दे दिया जाए तो यह काम कर लेगा श्यामू दास के परिवार वालों ने एक जगह बात करके उनको काम पर रखवा दिया लेकिन श्यामू दास का वहां भी यही हाल था कि वह कृष्ण भक्ति में इतने डूब जाते कि उनको ग्राहक का पता ही नहीं चलता जिसके कारण कुछ दिनों बाद उस दुकान के मालिक ने श्यामू दास को वहां से निकाल दिया
अब श्यामू दास अपने घर पर आ गए परिवार वालों ने सोचा श्यामू दास की शादी करवा दी जाए तो यह रास्ते पर आ जाएगा परिवार वालों की सहमति पर श्यामू दास की शादी करवा दी गई अब श्यामू दास और उनकी पत्नी दो लोग हो चुके थे लेकिन अभी भी श्यामू दास को कृष्ण भक्ति के अलावा कुछ भी नहीं सोचते थे एक दिन उनकी पत्नी ने कहा कि अगर आप ऐसे ही करते रहे तो हमारे पास खाने को भी कुछ नहीं बचेगा और परिवार के खर्च के लिए आधे से से ज्यादा गहने मैंने गिरवी रख दिए हैं
श्यामू दास के परिवार वालों ने तंग आकर श्यामू दास को अलग कर दिया उनके नाम पर जो भी उनकी खेती थी उनको दे दी और उनको खेत पर ही एक छोटी सी झोपड़ी बनाकर दे दी और परिवार वालों ने बोला कि अब आपको यहीं पर रहना पड़ेगा श्यामू दास यहां भी विचलित नहीं हुए और वह वहां पर अपनी कुटिया बनाकर पत्नी सहित रहने लगे
अब जब खेत के जोतने का समय आया तो भक्त श्यामू दास को कृष्ण भक्ति के अलावा कुछ भी नहीं आता था उनकी पत्नी ने बोला कि देखो आसपास के सारे किसान अपने खेत को जोत रहे हैं आप भी अपने खेत को जोत लो ताकि हम लोगों को किसी के सामने हाथ ना फैलाना पढ़े पत्नी के बार-बार आग्रह करने के बाद श्यामू दास बाजार गए और वहां से कुछ गेहूं के बीज खरीद कर ले आए और उन्होंने खेत मे हल नहीं चलाया और ऐसे ही गेहूं फेंक दिए
भक्त श्यामू दास को पता ही नहीं था की खेती कैसे की जाती है वह तो निश्चित थे और उन्हें अपने भगवान श्रीकृष्ण पर बहुत विश्वास था यह देख कर गांव के सारे किसान कहने लगे कि ऐसे कौन खेती करता है कि खेत में सिर्फ गेहूं के बीज फेंक दो और उससे गेहूं की फसल उग आए लेकिन कहते हैं ना जिस पर भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद रहता है उसको जीवन में कभी भी कोई समस्या नहीं आती है क्योंकि भगवान हमेशा भक्तों के बस में रहते हैं
आज एसा ही प्रेम श्यामू दास और भगवान श्री कृष्ण के बीच में था श्यामू दास ने अपने खेत में बीज डाले और निश्चिंत होकर घर पर आ गए लेकिन रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं भक्त श्यामू दास का रूप धारण करके और रुकमणी माता उसकी पत्नी का रूप धारण करके उसके खेत में आई और उसके खेत को बैलों से जोता और फिर खेत में गेहूं के दाने डाल दिए और खेत में पानी भी दे दिया इस बात का तनिक भी ज्ञान श्यामू दास को नहीं था और उधर रात्रि में भगवान ने इंद्रदेव को आदेश दिया कि इस गांव में बारिश करवा दो सुबह-सुबह बारिश की वजह से श्यामू दास को अपने खेत में कुछ भी समझ में ना आया
लेकिन रात में भगवान ने और माता रुक्मणी ने श्यामू दास का रूप रखकर खेत जोता था उसी गांव के एक पुजारी ने देख लिया उसे लगा की श्यामू दास किसानों को पागल बना रहा है दिन में तो उसने ऐसे ही गेहूं फेंक दिए और रात में खेत जोतने चला आया लेकिन उसने किसानों को इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया और ना ही इसकी चर्चा की श्यामू दास के खेत की कुछ दिनों पश्चात जब फसल उगने की बारी आई ,तो गांव के किसानों को पता था कि श्यामू दास को खेती नहीं आती है तो इसके खेत से क्या निकलेगा और वह सब ऐसा सोच सोच कर हंस रहे थे परंतु यह क्या सबसे ज्यादा फसल श्यामू दास के खेत में थी
यह सब देखकर गांव के जो किसान जो श्यामू दास से जलते थे वह आश्चर्य में पड़ गए कि यह कैसे हो गया कि कोई भला गेहूं फेंक कर कैसे खेती कर सकता है श्यामू दास के खेत की फसल आने की चर्चा पूरे गांव में आग की तरह फैल गई धीरे-धीरे बात उस पुजारी तक पहुंची तो पुजारी ने बोला कि भाई मैंने खुद अपनी आंखों से देखा है कि श्यामू दास और उनकी पत्नी रात में आए और खेत को जोतकर चले गए अब यह बात भी गांव में आग की तरह फैल गई
गांव के कुछ किसान श्यामू दास के पास आए और बोले श्यामू दास मुझे भी बताओ ऐसी कौन सी तकनीकी है तुम्हारे पास कि तुम रात में प्रयोग में लाते हो और रात में ही अपना खेत जोतते हो वह हमें भी बताओ जिससे हम भी तुम्हारी तरह अपने खेत में फसल लहरा सकें यह सुनकर श्यामू दास का माथा ठनक गया और बोला मैं तो कभी अपनी पत्नी के साथ रात्रि में खेती करने गया ही नहीं
गांव के किसान बोलने लगे कि श्यामू दास तुम झूठ बोल रहे हो तुम्हें नहीं बताना है तो मत बताओ और यह कहकर सब वापस चले गए अब श्यामू दास सोच में पड़ गए कि रात्रि में हमारा खेत जोतने के लिए कौन आया था सोचते सोचते उन्हें अब एहसास हो गया था कि स्वयं भगवान कृष्ण और माता रुक्मणी उनका खेत जोतने के लिए आए थे अब तो है यह सोच कर वह बहुत रोने लगे उनकी आंखों से आंसू की धाराएं बहे जा रही थी और आंखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे रोते-रोते और भगवान कृष्ण के मंदिर में गए और वहां जाकर रोते-रोते बेहोश हो गए
जब होश आया तो देखा कि स्वयं साक्षात भगवान कृष्ण और माता उनके सामने खड़े थे श्यामू दास ने भगवान श्री कृष्ण और माता रुक्मणी को बोला कि मैं कितना अभागा हूं आपको स्वयं मेरा खेत जोतने के लिए आना पड़ा आपके पैरों में छाले पड़ गए होंगे और कांटो से आपके पैरों में खून आने लगा होगा इतना कहकर वह भगवान के के पैर अपने कपडे से साफ करने लगे और अपना सिर उनके चरणों में रख दिया
भगवान कृष्ण बोले श्यामू दास भगवान हमेशा भक्तों के बस में होते हैं और तुम जैसे परोपकारी भक्तों के लिए तो मुझे इतना करना ही था यह कहकर भगवान ने श्यामू दास से बोला कि आज से जब भी तुम को जरूरत पड़ेगी तो मैं तुम्हारे सामने साक्षात प्रकट हो जाऊंगा और माता रुक्मणी ने भी श्यामू दास को आशीर्वाद दिया और यह कह कर भगवान श्री कृष्ण और माता रुक्मणी अंतर्ध्यान हो गए
अब श्यामू दास भक्त श्यामू दास बन गए थे जिसको भगवान ने दर्शन दिए हो उससे बड़ा भगवान का भक्त कौन हो सकता है अब तो भक्त श्यामू दास जिसके ऊपर भी हाथ रख देते थे उसका काम पूरा हो जाता था और जिसके लिए वह जो बोल देते थे उसे तो पूरा होना ही था क्योंकि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भक्त श्यामू दास को बोला था और ऐसा करते करते उनके खेत में कुटिया की जगह उनका आश्रम बन गया और गांव के कुछ लोग उनके शिष्य बन गए अब तो भक्त श्यामू दास के घर के सामने भीड़ ही भीड़ होती थी दूर दूर से लोग आते थे कि बस एक बार भक्त श्यामू दास का आशीर्वाद मिल जाए और जब तक भक्त श्यामू दास जिंदा रहे तब तक उन्होंने लोगों की बहुत सेवा की.
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