पांच कदम की जिंदगी


 

पांच कदम की जिंदगी एक मोटिवेशनल कहानी

 

माधव नगर में गुरुकुल नाम की एक पाठशाला थी वहां पर दो  शिष्य पढ़ा करते थे उनमें से एक का नाम हरि और दूसरे का नाम गोपाल था हरी और गोपाल दोनों में बहुत ही अच्छी मित्रता थी  दोनों साथ साथ पड़ते थे दोनों साथ साथ पाठशाला जाते और दोनों साथ खाना खाते थे
दोनों मित्र पढ़ने में बहुत अच्छे थे इसीलिए गुरुजी दोनों को पसंद  करते थे
 एक समय की बात है कि गुरु जी ने हरी और गोपाल  की परीक्षा लेने की सोची और हरी और गोपाल को बोला आज के 10 दिन बाद अमावस्या है और अमावस्या की रात 8:00 बजे आप दोनों इस पाठशाला में उपस्थित हो जाना
 हरी और गोपाल अब दोनों बेचैन हो गए थे कि गुरु जी क्या परीक्षा लेने वाले हैं और ऐसी कौन सी परीक्षा है जो रात में लेंगे गोपाल और हरी ने 10 दिन के अंदर  अपने सारे विषय बहुत अच्छी तरीके से विषय याद कर लिए 
अब आज अमावस्या की रात्रि आने वाली थी तो हरी और गोपाल दोनों ही आज उत्साहित थे और दोनों मन में सोच रहे थे की आज मैं प्रथम श्रेणी में पास हो जाऊंगा और रात्रि के समय दोनों आठ बजे पाठशाला पहुंच गए थोड़ी देर बाद गुरुजी दो लालटेन और दो झंडे लेकर  आए और दोनों को एक-एक लालटेन और झंडा पकड़ा दिया
 हरी और गोपाल ने सोचा कि हम तो अपने सारे विषय अच्छी तरीके से याद करके आए थे लेकिन आज गुरु जी हमारी किस प्रकार की परीक्षा ले रहे हैं गुरु जी ने हरि और गोपाल को बोला यहां से पांच से किलोमीटर दूर पर एक माता का मंदिर है और जो  मैंने आप दोनों को झंडा दिया है यह माता के मंदिर में रखना है तुम दोनों रात्रि में उस मंदिर की तरफ अलग-अलग रास्ते से जाओगे और सुबह चार बजे तक वापस आ जाना यह कहकर गुरुजी वापस चले गए 
सुबह के चार बज चुके थे गुरुजी वापस आए तो देखा हरि मंदिर में जाकर वापस आ गया था और गोपाल वहीं पर खड़ा हुआ था गुरुजी ने गोपाल से पूछा तुम मंदिर क्यों नहीं गए तुम यही क्यों खड़े  हो गोपाल ने गुरु जी को बताया कि जब मैं लालटेन लेकर खड़ा हुआ तो मुझे आगे का कुछ दिखाई नहीं दे रहा था और इस वजह से मैं मंदिर जा ही नहीं पाया और मैं यह सोच रहा था कि जब सुबह हो तो फिर मैं मंदिर जाऊंगा
अब गुरु जी ने यही सवाल हरि से पूछा , हरि ने बताया कि मैं मंदिर गया था और वहां काली माता के मंदिर में झंडा रखकर वापस आ गया अब गुरु जी ने हरि से पूछा कि मंदिर तक की तुमने यात्रा कैसे पूरी  की। हरि ने बताया गुरुजी जब मैं लालटेन लेकर खड़ा हुआ तो सिर्फ मुझे पांच कदम दूरी का ही सब कुछ दिखाई दे रहा था और जैसे ही मैं पांच कदम और आगे बढ़ा तो  मुझे आगे के पांच कदम का भी  सब कुछ साफ साफ दिखाई देने लगा और ऐसे ही मैंने पांच पांच  कदम आगे बढ़ते हुए मंदिर की यात्रा पूरी की और मैं इसी प्रकार वापस आ गया गुरुजी हरि से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने हरि को गले लगा लिया
  गोपाल गुरु जी के पास आकर बोला  गुरु जी मुझे माफ कर दो मैं इस परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाया 
 अब गुरु जी ने हरी और गोपाल दोनों को बुलाया और बोला  हमारी जिंदगी भी बिल्कुल रात्रि की तरह है हमारी आंखें और सोच हमारी लालटेन है और झंडा हमारा लक्ष्य है  
अगर हम पूरी जिंदगी का हिसाब किताब एक बार मैं ही सोच कर हम अगर जिंदगी की शुरुआत करेंगे तो हम कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे और अगर यदि हम पांच पांच कदम रखकर आगे बढ़ते रहे तो हम अपनी जिंदगी में सब कुछ पा लेंगे जो हमने सोच रखा है
मित्रों हमारी जिंदगी भी कुछ इसी तरह है जब हम एक जगह बैठ कर अपने भविष्य के बारे में एक बार में ही सोचने लग जाते हैं तो हमें लगता है कि अब हम कुछ नहीं कर सकते
 हमें हमारा भविष्य अंधकार में दिखाई देने लगता है लेकिन अगर यदि हम उस समय सिर्फ पांच पांच कदम लेकर भविष्य की ओर बढ़ेंगे तो हम भविष्य में हजारों लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे क्योंकि हम एक साथ ही सब सोच लेते हैं और फिर उसके बाद हमें समझ में ही नहीं आता है की अब हमें क्या करना है और यही अगर हम प्लानिंग करके आगे बढ़ते हैं तो हमें अपनी जिंदगी में धीरे धीरे सब कुछ दिखाई देने लगता है 
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